Friday, March 5, 2010

दिन

दिन
( भाई की स्कूल मैगज़ीन के लिये लिखी थी)

दिन आते हैं , और आकर चले जाते हैं !
हर दिन अपने साथ हमें कुछ सिखाते जाते हैं!
बस यह सीखने वालों पे है की वोह क्या सीख पातें हैं !
कुछ सीख कर अच्छे कुछ बुरे बन जाते हैं

हर दिन का अपना महत्व है,
पर हम तो मजबूर हैं क्यूंकि
जैसे हम कोयले को साबुन से सजा नहीं सकते
वैसे ही हम मूढों को कुछ सिखा नहीं सकते!

ये कुदरत का करिश्मा है की गह्धा घोड़े से कम,
पर घोडा गधे से जादा सेख लेता है
पहले गधा वजन धोता था,
आजकल घोडा भी कर लेता है!

यह ज़माने की प्रगति है,
जिसने इतना कुछ कितने कुछ को सिखा दिया है!
तुम इतने पे अचंभित हो,
यहाँ इंसान ने अपना ही क्लोन बना दिया है!

जागो कुछ सीखो आअज का दिन जा रहा है!
कल जो आएगा वोह ठहर नहीं जाएयेगा
ऐसा न हुआ न होने पायेगा
एक और मौका तुम्हारे हाँथ से निकल जाएगा!

आज कुछ नहीं गया पर कल चला जाएगा
बेहतर येही है की जागो कुछ करो!
वर्ना समय भाग जाएगा और हाँथ नहीं आएगा
एक और दिन बीत जाएगा! एक और दिन बीत जाएगा!

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