श्यामल चादर , और उसपे ये चांदनी की नक्काशी .
मद्धम सी हवा , बावरा भवरा .
इतराता बादल चाँद को ओड़नी उढाता हुआ.
ऐसा समा देख किसे ना इश्क हो जाएगा .
व्याकुल मन और गंगा का तट ,
मद्धम स्वर , दूर पायल की छन छन.
कौन तेरा कान्हा न बनना चाहेगा.
पर इस सन्नाटे को चीरता , एक बावाली का विलाप.
तन धूमिल और मनन विचलित,
उसपर श्यामल चादर के केवल ढाक.
कौन सा कान्हा अब इस को अपनाएगा.
फिर सुनता हूँ मैं एक घनघोर नाद.
गंगा में तरंगें उठती हुई,पल भर में फिर था
गंगा का मद्धम स्वर हवा में व्याप्त
और सुबह की पहली किरण पड़ते ही मैंने देखा
संतुष्ट चील का झुण्ड गंगा तट पर कर रहा था वाद विवाद!
3 comments:
Touching... Very beautiful, lucid and pure... With every passing day, the fate of a woman is so tied with that of a man. And if she cannot find a Kanha, her life is bound in miseries, until she is finally taken by the vultures... Death is better than the cruelties enforced upon her by the strange ways of life!
its not about women acpeting death, but is forced to die due to some reason .(easily guessable)
Exceptionally well written, beautiful use of words and especially the description of the scene was moving, should have not ended it that abruptly though.. din't knew you write so well.. but somehow it seems people dint get the meaning it conveyed.. :P
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